Daastan-e-Zindagi KATI PATANG |
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कटी पतंग
सुलेखा अपने घर का सारा
काम काज निपटा कर दहलीज़
पर अपने बेटे को ले आ बैठी
| यही समय होता था की वह थोडा
आराम कर लिया करती थी | धुप
सकने का कुछ समय अह रोज़
निकाल लिया करती थी |आराम
करते हुए वह अपने पति का
स्वेटर भी आजकल बन रही
थी | बेटा राजू, जो इस समय
आठवें साल से गुजर रहा
था, अपने दोस्तों घर के
आगे बने मैदान में पतंग
उड़ाते हुए बच्चों को देख
रहा था |वह कभी मैदान में
पतंग उडाती हुई किसी एक
टोली के पास खड़ा हो जाता
तो कभी दूसरी | उसे पतंगों
से इतना प्यार था की वह
तब तक घर नैन लौटता, जब तक
आसमान में एक भी पतंग दिखाई
देती |सुलेखा स्वेटर बुनते
हुए अपने बच्चे को निहार
रही थी और अपने भविष्य
के सपनों में अपने बुदापे
का सहारा देख रही थी |वह
अपनी गुजरती ज़िन्दगी
से बहुत खुश थी | उसका पति,
घर से चार किलोमीटर दूर
एक लक्कड़ काटने वाली फेक्टरी
में काम करता था, जहाँ से
उसे अच्छी तनख्वाह मिल
जाती थी | घर परिवार का खर्च
उठाकर वह बहुत सा हिस्सा
बचा लिया करते थे | परिवार
में तीन लोगों के इलावा
औरकोई भी नहीं था उनमें
वो खुद , उसका पति राम किशन
और बीटा राजू | पति रामकिशन
बड़ा ईमानदार और मेहनती
व्यक्ति था |उसका मालिक,
जिसकी फेक्टरी में वह
काम करता था उसके काम से
बहत खुश था इसलिए उसने
गाज़ियाबाद के छोटे से
गाँव, महाराज पुर दो कमरों
का मकान रहने के लिए दे
दिया था इसकी वज़ह से उसली
आर्थिक स्थिति काफी मज़बूत
हो गई थी | उनकी सम्पन्नता
देखकर आसपास की पडौसन
उससे जला करती थीं | इसको
भांपकर वह मन ही मन खुश
हुआ करती थी | उसके ख़्वाबों
की लड़ी तब टूटी जब राजू
रोता हुआ आया और माँ से
बोला माँ-माँ मुझे भी पतंग
ले दो न | वो लोग मुझे पतंग
नहीं दिखाते | सुलेखा बोली
कोई बात नहीं बेटे पापा
अभी शाम को आ जायेंगे और
तुझे बहुत साड़ी पतंग ले
देंगे | अच्छे बच्चे रोते
नहीं हैं बेटे | माँ के प्यार
से पुचकारने से बच्चा
चुप होकर वापिस बच्चो
के बीच चला गया | सुलेखा
ने जाते हुए बच्चे से नज़र
हटा कर अपनी कलाई पर बंधी
घड़ी पर नज़र डाली जिसनें
दुपहर के दो बजे थे | उसके
पति को घर लौटने में अभी
चार घंटे बाकि थे |वह अभी
सोच ही रही थी कि बाज़ार
जाकर अगले दिन के लिए तरकारी
भाजी आदि ले आये | क्यूंकि
शाम को उसके पति उसे घर
से बाहर निकलने नहीं देते
थे | इतने में पडौस में रहने
वाली एक महिला उसके पास
आकर बोली भई सुलेखा क्या
कर रही हो ? सुलेखा बोली
– करना क्या है रामकली,
बस शाम तक का वक़्त काट रही
हूँ | भई लगता है कि मियाँ
बिन दिल नहीं लगता—रामकली
चटकारे लेते हुए बोली
| नहीं- नहीं ऎसी बात तो नहीं
है , बात को आगे न बढ़ाते हुए
सुलेखा ने कहा – तुम बताओ
तुम कहाँ चली इतना सज़-धज
कर | रामकली बोली मैं तो
लाजो को लेने उसके घर जा
रही हूँ | वहां से हम दिल्ली
में चांदनी चौक जायेंगे
| वहाँ सुना है एक योगी महाराज
आये हैं | जो कि बिना कुछ
लिए दिए भविष्य का सब हाल
बता देते हैं | अगर तुमने
चलना है तो चल हमारे संग
|तेरे उनके आने से पहले
ही घर लौट आयेंगे |सुलेखा
को अपने भविष्य के बारे
में जानने में वैसे भी
बड़ी जिज्ञासा लगी रहती
थी | सो वह दो मकान छोड़ कर
अपने पति रामकिशन के दोस्त
रमेश के यहाँ गई और राजू
का ध्यान रखने को कहकर
रामकली के साथ चल दी |वहाँ
से तीनों सहेलियां दिल्ली
के चांदनी चौक में उस योगी
के पास पहुंची | वहाँ काफी
संख्या में लोग बैठे थे
| लेकिन इसके बावजूद वहाँ
शोरगुल नहीं था | वह तीनों
भी उनके बीच जा बैठी | योगी
महाराज आँख बंद कर अपना
आसन जमाये बड़े सहज भाव
से अपने एक शिष्य के द्वारा
एक एक करके सब को अपने पास
बुला रहे थे | योगी महाराज
की उम्र लगभग ३० और ३५ वर्ष
के बीच लग रही थी | देखने
में एक साधारण से पुरुष
लग रहे थे | उनके और लोगों
के बीच इतना फासला ज़रूर
था कि उनके पास बैठे व्यक्ति
के अतिरिक्त उनकी आवाज़
किसी दुसरे को सुनी नहीं
पड रही थी | पता नहीं सुलेखा
को अपने भविष्य के बारे
में योगी के पास जाते हुए
बहुत डर सा महसूस हो रहा
था | धड़कन अभी से तेज़ थी |
हालांकि अभी ये भी मालूम
नहीं था कि उसका नम्बर
आएगा भी के नहीं | अभी वह
सोच ही रही थी कि उनके शिष्य
ने आवाज़ लगाई ‘सुलेखा
देवी’ !!!
एक छोटा सा इनाम लेकर वो
जब घर पहुँच तो देखा माँ
चारपाई पर लेटी थी | अपनी
छोटी सी ज़िंदगी में उसने
माँ को इस समय कभी चारपाई
पर आराम करते नहीं देखा
था | वह जल्दी-जल्दी भागता
हुआ माँ के पास आया और नन्हा
सा इनाम माँ को दिखाते
हुए पुछा माँ- माँ आपको
क्या हुआ | सुलेखा बोली
कुछ नहीं हुआ बेटा थोडा
सा बुखार है | राजू मन ही
मन उदास हो गया | उसकी सारी
उमीदों पर पानी फिर गया
| वो समझ चूका था कि अब उसकी
पतंग नहीं आएगी |वह चुपचाप
माँ के सर पर हाथ सहलाता
हुआ छत की तरफ चल दिया | माँ
का अहसास आँखों से टपकने
लगा | लेकिन वह कुछ नहीं
कर सकती थी | पैसे के अभाव
में उसे बच्चे के सामने
बीमारी का नाटक करना पडा
| आपले दिन १५ अगस्त था | सूबह
-सुबह राजी ७ बजे उठा और
अपने लिहाज़ से सबसे अच्छे
कपडे निकाल कर नहा धोकर
तैयार हो गया और छत पर खड़ा
हो गया | बहुत सारी पतंगे
आसमान में झूल रही थीं
| हवा काफी तेज़ थी | उसकी नज़र
एक रंग बिरंगी पतंग पर
थी | जो देखने में बहुत सुंदर
नज़र आ रहा ही | वह पतंग उसकी
चाट के आसपास इधर-उधर मंडरा
रही थी | उसकी बड़ी तमना थी
कि यह पतंग उसके पास होती
| क्यूंकि वह कई पतंगों
को काट रही थी और जो पतंग
कट जाती वह पतंग उसकी छत
के ऊपर से होकर गुज़र जाती
| राजू छत पर इधर-उधर भागता
मगर कोई बी पतंग उसके हाथ
न लगती | माँ जब ये सब देखती
उसकी आँखों में हेल से
आंसू गाल से नीचे लुडक
जाते | आज वह राजू के लिए
मालिक से छुट्टी ले चुकी
थी और चारपाई पर बैठी राजू
को ही देख रही थी | राजू इधर-उधर
भागकर फिर उसी रंग-बिरंगी
पतंग की तरफ देखने लगता
जो उसके मन-पसंद की थी | इतने
में उसने देखा वह पतंग
किसी ओर पतंग के साथ गुत्थमगुत्था
होकर उसकी छत की तरफ झुकी
और कट गई | राजू कमान धक्
से रह गया और वह उस पतंग
की तरफ लपका |वह पतंग उस
खंडहर के ऊपर कहर रही थी
| राजू ने अपना हाथ आगे बढाया
| राजू की यह सब देखकर एकदम
लपकी मगर तब तक राजू की
एक लंबी चीख माँ की चीख
के साथ मिल चुकी थी | इतनी
भयानक चीख सुन बिजली की
फूर्ती से राजू के पापा
ने अपनी बैसाखी उठाई और
वह भी उस ओर भागे जिस ओर
की मुंडेर से राजू नीचे
गिरा था | भाव्वेश में जैसे
ही उसने नीचे झाँका , नीचे
का द्रश्य देखकर रामकिशन
वहीँ ढेर हो गया | सुलेखा
यह सब देख खामोश हो गई | क्यूंकि
अब उसकी ज़िंदगी एक कटी
पतंग बन चुकी थी | वह देख
राइ थी जिस पतंग के पेचे
राजू भागा था वही पतंग
उसके शिथिलशरीर पर पड़ी
थी | आज भी बरसों बाद उस योगी
महाराज के शब्द उसके दिमाग
में घुमते हैं कि ज़िंदगी
से घबराना नहीं | अभी बहुत
कुछ झेलना है | बहुत लम्बी
ज़िंदगी है जो अकेले गुजारनी
है | हर्ष महाजन ===OOO=== |
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